जो अपनी तथा सबकी काया में परमपिता परात्पर परम ब्रम्ह श्री चित्रगुप्त के अंश को स्थित मानते हैं वे कायस्थ हैं. राष्ट्रीय कायस्थ महापरिषद सामाजिक कुरीतियों एवं रूढियों का विरोध कर योग्यता पर आधारित समाज का पक्षधर है.
शुक्रवार, 26 दिसंबर 2014
गुरुवार, 25 दिसंबर 2014
RKM: kayastha sammelan Jaipur
RKM: kayastha sammelan Jaipur
बुधवार, 24 दिसंबर 2014
kayastha sammelan
ॐ
(मानव कल्याण हेतु समर्पित संस्थाओं, मंदिरों, पत्रिकाओं व सज्जनों का परिसंघ,पंजीयन क्रमांक: 0874@2013 )
: कार्यालय :
: कार्यालय :
राष्ट्रीय अध्यक्ष: त्रिलोकी प्रसाद वर्मा
रामसखी निवास, पड़ाव पोखर लेन, आमगोला,
मुजफ्फरपुर-842002 बिहार
०९४३१२ ३८६२३, ०६२१-२२४३९९९,
trilokee.verma@gmail.com
महामंत्री :इंजी. संजीव वर्मा 'सलिल',
महामंत्री :इंजी. संजीव वर्मा 'सलिल',
२०४, विजय अपार्टमेन्ट, नेपियर टाउन, जबलपुर, ४८२००१ मध्यप्रदेश ९४२५१ ८३२४४ , ०७६१ २४१११३१, salil.sanjiv@gmail.com
कोषाध्यक्ष-प्रशासनिक सचिव: अरबिंदकुमार सिन्हा जे. ऍफ़. १/७१, ब्लोक ६, मार्ग १० राजेन्द्र नगर पटना ८०००१६, ०९४३१० ७७५५५, ०६१२ २६८४४४४, arbindsinha@yahoo.com
। कायास्थित ईश का, अंश हुआ कायस्थ ।
।। सब सबके सहयोग से, हों उन्नत आत्मस्थ ।।
==========================================
पत्र क्रमांक: ५०१ महा/राकाम/२०१४ प्रवास रायपुर,दिनाँक: २०-१२-२०१४ ८.५.२०१४ बैठक राष्ट्रीय कायस्थ महासभा १२ वाँ वार्षिक सम्मेलन : २०१३-१४
अधिसूचना
. दिनांक: २७ - २८ दिसंबर २०१४, स्थान: पंचायती धर्मशाला, निकट राजस्थान पर्यटन विकास निगम रेलवे स्टेशन जयपुर।
संयोजक: राजस्थान फेडरेशन ऑफ़ कायस्थ एसोसिएशन।
|
कार्यक्रम विवरण : दिनांक : २७ - १२ - २०१४
(अ) कार्यकारिणी/संगठन समिति [संविधान कंडिका १२ के अनुसार उपस्थिति प्रार्थनीय : अध्यक्ष,उपाध्यक्ष, महामंत्री, सचिव,संयुक्त सचिव, कोषाध्यक्ष,संगठन सचिव,संयुक्त संगठन सचिव, मुख्य समन्वयक, संयोजक, प्रकोष्ठ प्रभारी आदि समस्त पदाधिकारी तथा सम्बद्ध संस्था प्रतिनिधि]/सञ्चालन समिति[संविधान कंडिका १२ के अनुसार उपस्थिति प्रार्थनीय : अध्यक्ष,उपाध्यक्ष,महामंत्री, सचिव, संयुक्त सचिव, कोषाध्यक्ष, संगठन सचिव,संयुक्त संगठन सचिव, मुख्य समन्वयक,संयोजक, प्रकोष्ठ प्रभारी आदि समस्त पदाधिकारी तथा सम्बद्ध संस्था प्रतिनिधि।] बैठक तथा स्वल्पाहार : अपरान्ह ४.०० बजे से रात्रि ९.०० बजे ।
कार्यावलि: १. देवाधिदेव श्री चित्रगुप्त अर्चना।
२. गत सञ्चालन समिति/संगठन समिति/सामान्य समिति बैठकों के प्रतिवेदनों तथा पदाधिकारियों के लिखित प्रतिवेदनों पर विचार।
३. आय- व्यय विवरण पारित किया जाना।
४. बजट प्रस्तावों पर विचारअनुशंसा।
५. सञ्चालन समिति बैठक में प्रस्तुत करने हेतु प्राप्त लिखित प्रतिवेदनों प्रस्तावों/सुझावों/कार्यक्रमों/आमंत्रणों/आवेदनों/सम्मान प्रस्तावों पर विचार व अनुशंसा। आगामी त्रिमास हेतु लक्ष्य निर्धारण। ६. अन्य विषय अध्यक्ष की अनुमति से।
२. गत सञ्चालन समिति/संगठन समिति/सामान्य समिति बैठकों के प्रतिवेदनों तथा पदाधिकारियों के लिखित प्रतिवेदनों पर विचार।
३. आय- व्यय विवरण पारित किया जाना।
४. बजट प्रस्तावों पर विचारअनुशंसा।
५. सञ्चालन समिति बैठक में प्रस्तुत करने हेतु प्राप्त लिखित प्रतिवेदनों प्रस्तावों/सुझावों/कार्यक्रमों
७. महामंत्री/अध्यक्ष द्वारा सम्बोधन व समापन।
रात्रि ९.३० बजे: अतिथि भोज।
दिनांक : २८ - १२ - २०१४
(अ) प्रातः ८ - ९ बजे: स्वल्पाहार, चाय ।
(आ) सामान्य सम्मेलन (आम सभा): प्रातः १० बजे से १ बजे
संविधान कंडिका १२ के अनुसार उपस्थिति प्रार्थनीय : संस्था के समस्त पदाधिकारी व सदस्य,सम्बद्ध संस्थाओं के पदाधिकारी व सदस्य,समाज के सभी सदस्य व हितचिंतक।
संविधान कंडिका १२ के अनुसार उपस्थिति प्रार्थनीय : संस्था के समस्त पदाधिकारी व सदस्य,सम्बद्ध संस्थाओं के पदाधिकारी व सदस्य,समाज के सभी सदस्य व हितचिंतक।
(क) स्वागत / परिचय सत्र:सञ्चालन सचिव स्वागत समिति द्वारा
१. ध्वजारोहण तथा देवाधिदेव श्री चित्रगुप्त पूजन, आरती ।
२. संयोजक द्वारा अतिथि/ पदाधिकारी स्वागत व स्वागत भाषण, आयोजन पर प्रकाश।
३. अतिथि / राष्ट्रीय पदाधिकारी परिचय ।
४. सम्बद्ध तथा स्थानीय संस्था प्रतिनिधि परिचय।
५. उपस्थितों द्वारा आत्म परिचय ।
६. महामंत्री / अध्यक्ष द्वारा सम्बोधन।
७. अतिथियों का सम्बोधन तथा संयोजक द्वारा आभार।
१. ध्वजारोहण तथा देवाधिदेव श्री चित्रगुप्त पूजन, आरती ।
२. संयोजक द्वारा अतिथि/ पदाधिकारी स्वागत व स्वागत भाषण, आयोजन पर प्रकाश।
३. अतिथि / राष्ट्रीय पदाधिकारी परिचय ।
४. सम्बद्ध तथा स्थानीय संस्था प्रतिनिधि परिचय।
५. उपस्थितों द्वारा आत्म परिचय ।
६. महामंत्री / अध्यक्ष द्वारा सम्बोधन।
७. अतिथियों का सम्बोधन तथा संयोजक द्वारा आभार।
(ख) कार्यवाही सत्र:सञ्चालन महामंत्री द्वारा
१. महामंत्री द्वारा सत्र प्रक्रिया की जानकारी।
२. महापरिषद का लेखा-जोखा,वार्षिक बजट,नियुक्तियाँ, बैठक प्रतिवेदनों को प्रस्तुत व पारित करना।
३. उपस्थित सदस्यों से प्राप्त लिखित प्रतिवेदनों / सुझावों आदि पर विचार व निर्णय।
३. स्थानीय संस्थाओं,आयोजनों,समस्याओं पर चर्चा व निर्णय।
४. परिचर्चा: '२१ वीं सदी में जातिगत आरक्षण और कायस्थ समाज।
५. महामंत्री / अध्यक्ष द्वारा सम्बोधन ।
अपरान्ह १.३० - २.३० बजे: बिरादरी भोज।
४. परिचर्चा: '२१ वीं सदी में जातिगत आरक्षण और कायस्थ समाज।
५. महामंत्री / अध्यक्ष द्वारा सम्बोधन ।
अपरान्ह १.३० - २.३० बजे: बिरादरी भोज।
(ग) समापन सत्र (स्थानीय बैठक एवं बिदाई समारोह):अपरान्ह २.०० बजे:सञ्चालन संयोजक द्वारा
१. अतिथि आमंत्रण। २. प्रतिभा पुरस्कार / सम्मान।
३. अतिथियों का सम्बोधन। ४. अतिथियों द्वारा आयोजकों के प्रति आभार।
५. संयोजक द्वारा अतिथियों के प्रति आभार व समापन।
५. संयोजक द्वारा अतिथियों के प्रति आभार व समापन।
संपर्क: श्री दिनेश कुमार माथुर संयुक्त महासचिव ०९८२९७५२१९२, श्री अरुण माथुर सचिव फील्ड ०९९२९६२८४३८, श्री नारायण बिहारी माथुर सदस्य कार्यकारिणी समिति ०९८२९६५६०४१,
निर्देश: १. आगमन प्रस्थान सूचना- १५ दिसंबर के पूर्व श्री अरबिंद कुमार सिन्हा कोषाध्यक्ष सह प्रशासनिक सचिव ०९४३०२३३३५५, ०६१२ २६८४४४४
२. प्रगति प्रतिवेदन, सुझाव, शिकायतें- वरिष्ठ उपाध्यक्ष डॉ. यूं सी. श्रीवास्तव (कानपूर),
३. वर्ष २०१४ हेतु सदस्यता नवीनीकरण निर्धारित प्रपत्र में ५०० रु. शुल्क तथा २ पासपोर्ट चित्रों के साथ श्रीअरबिंद कुमार सिन्हा कोषाध्यक्ष सह प्रशासनिक सचिव ०९४३०२३३३५५, ०६१२ २६८४४४४
Sub: 12th National Conference at Jaipur
3) Membership or rennual for the year 2014 in prescribed form along with Rs.500 ( Fee 250+ Help 250) and two passport size photo hand over to Treasure cum A.D.M. secreatory Arvind Kr. Sinha (Patna)
Sanjiv verma 'Salil'
General Sectratary
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'
shri chitraguptaji bhajan:

श्री चित्रगुप्त के श्री चरणों में, श्रृद्धा सहित प्रणाम करें।
तृष्णा-माया-मोह त्यागकर, परम पिता का ध्यान धरें।
श्री चित्रगुप्त के श्री चरणों में.....
लिपि- लेखनीके आविष्कर्ता, मानव-मन के पीड़ा-हर्ता।
कर्म-देव प्रभु, कर्म-प्रमुख जग, नित गुणगान करें।
श्री चित्रगुप्त के श्री चरणों में.....
किए वर्ण स्थापित चार, रचा व्यस्थित सब संसार।
जैसी करनी वैसी भरनी, मत अभिमान करें।
श्री चित्रगुप्त के श्री चरणों में.....
है दहेज़ दानव विकराल, आरक्षण प्रतिभा का काल।
सेवक तेरे स्वामी बनकर, श्रम का मान करें।
श्री चित्रगुप्त के श्री चरणों में.....
कायथ की पहचान कर्म है, नीति-निपुणता सत्य-धर्म है।
मर्म-कुशलता-व्यावहारिकता, कर्म महान करें।
श्री चित्रगुप्त के श्री चरणों में.....
***************************
लेबल:
चित्रगुप्त,
भजन,
संजीव,
bhajan,
chitraguptaji,
sanjiv
shri chitraguptaji bhajan
श्री चित्रगुप्त भजन:
संजीव

संजीव

हे चित्रगुप्त भगवान! करुँ गुणगान, दया प्रभु कीजे, विनती मोरी सुन ...
जनम-जनम से भटक रहे हम, चमक-दमक में अटक रहे हम।
भव सागर में दुःख भोगें, उद्धार हमारा कीजे, विनती मोरी सुन लीजे...
हम याचक, विधि -हरि-हर दाता, भक्ति अटल दो भाग्य-विधाता।
मुक्ति पा सकें कर्म-चक्र से, युक्ति बता प्रभु! दीजे...
सकल सृष्टि के हे अवतारक!, लिपि-लेखनी-मसि आविष्कारक।
हे जनगण-मन के अधिनायक !, सब जग तुम पर रीझे ...
चर - अचरों में वस् तुम्हारा, तुम ही सबका एक सहारा।
शब्द-नाद मय तन-मन कर दो, चरण-शरण प्रभु दीजे...
करो कृपा हे देव! दयालु, लक्ष्मी-शारद-शक्ति कृपालु।
'सलिल' शरण है जनम-जनम से, सफल साधना कीजे...
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लेबल:
चित्रगुप्त,
भजन,
संजीव,
bhajan,
chitraguptaji,
sanjiv
shri chitragupta bhajan:

श्री भगवान
संजीव
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...
जब मेरे प्रभु जग में आवें, नभ से देव सुमन बरसावें।
कलम-दवात सुशोभित कर में, देते अक्षर ज्ञान
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...
चित्रगुप्त प्रभु शब्द-शक्ति हैं, माँ सरस्वती नाद शक्ति हैं।
ध्वनि अक्षर का मेल ऋचाएं, मन्त्र-श्लोक विज्ञान
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...
मातु नंदिनी आदिशक्ति हैं। माँ इरावती मोह-मुक्ति हैं.
इडा-पिंगला रिद्धि-सिद्धिवत, करती जग-उत्थान
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...
कण-कण में जो चित्र गुप्त है, कर्म-लेख वह चित्रगुप्त है।
कायस्थ है काया में स्थित, आत्मा महिमावान
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...
विधि-हरि-हर रच-पाल-मिटायें, अनहद सुन योगी तर जायें।
रमा-शारदा-शक्ति करें नित, जड़-चेतन कल्याण
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...
श्यामल मुखछवि, रूप सुहाना, जैसा बोना वैसा पाना।
कर्म न कोई छिपे ईश से, 'सलिल' रहे अनजान
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...
लोभ-मोह-विद्वेष-काम तज, करुणासागर प्रभु का नाम भज।
कर सत्कर्म 'शान्ति' पा ले, दुष्कर्म अशांति विधान
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...
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मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...
जब मेरे प्रभु जग में आवें, नभ से देव सुमन बरसावें।
कलम-दवात सुशोभित कर में, देते अक्षर ज्ञान
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...
चित्रगुप्त प्रभु शब्द-शक्ति हैं, माँ सरस्वती नाद शक्ति हैं।
ध्वनि अक्षर का मेल ऋचाएं, मन्त्र-श्लोक विज्ञान
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...
मातु नंदिनी आदिशक्ति हैं। माँ इरावती मोह-मुक्ति हैं.
इडा-पिंगला रिद्धि-सिद्धिवत, करती जग-उत्थान
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...
कण-कण में जो चित्र गुप्त है, कर्म-लेख वह चित्रगुप्त है।
कायस्थ है काया में स्थित, आत्मा महिमावान
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...
विधि-हरि-हर रच-पाल-मिटायें, अनहद सुन योगी तर जायें।
रमा-शारदा-शक्ति करें नित, जड़-चेतन कल्याण
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...
श्यामल मुखछवि, रूप सुहाना, जैसा बोना वैसा पाना।
कर्म न कोई छिपे ईश से, 'सलिल' रहे अनजान
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...
लोभ-मोह-विद्वेष-काम तज, करुणासागर प्रभु का नाम भज।
कर सत्कर्म 'शान्ति' पा ले, दुष्कर्म अशांति विधान
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...
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लेबल:
चित्रगुप्त,
भजन,
संजीव,
bhajan,
chitraguptaji,
sanjiv
bhajan: shri chitraguptaji

मातृ वंदना
संजीव
*
ममतामयी माँ नंदिनी-करुणामयी माँ इरावती।
सन्तान तेरी मिल उतारें, भाव-भक्ति से आरती...
लीला तुम्हारी हम न जानें, भ्रमित होकर हैं दुखी।
सत्पथ दिखाओ माँ, बने सन्तान सब तेरी सुखी॥
निर्मल ह्रदय के भाव हों, किंचित न कहीं अभाव हों-
सात्विक रहे आचार, माता सदय रहो निहारती..
कुछ काम जग के आ सकें, महिमा तुम्हारी गा सकें।
सत्कर्म कर आशीष मैया!, पुत्र तेरे पा सकें॥
निष्काम औ' निष्पक्ष रह, सब मोक्ष पायें अंत में-
निश्छल रहें मन-प्राण, वाणी नित तम्हें गुहारती...
चित्रेश प्रभु केकृपा मैया!, आप ही दिलवाइये।
जैसे भी हैं, हैं पुत्र माता!, मत हमें ठुकराइए॥
कंकर से शंकर बन सकें, सत-शिव औ' सुंदर वर सकें-
साधना कर सफल, क्यों मुझ 'सलिल' को बिसारती...
************
लेबल:
इरावती,
चित्रगुप्त भजन,
नंदिनी,
मातृ वंदना,
संजीव,
bhajan,
chitraguptaji,
irawati,
nandini,
sanjiv
bhajan: shri chitraguptaji
चित्रगुप्त भजन:
धन-धन भाग हमारे
आचार्य संजीव 'सलिल'
धन-धन भाग हमारे, प्रभु द्वारे पधारे।
शरणागत को तारें, प्रभु द्वारे पधारे....
माटी तन, चंचल अंतर्मन, परस हो प्रभु, करदो कंचन।
जनगण नित्य पुकारे, प्रभु द्वारे पधारे....
प्रीत की रीत हमेशा निभायी, लाज भगत की सदा बचाई।
कबहूँ न तनक बिसारे, प्रभु द्वारे पधारे...
मिथ्या जग की तृष्णा-माया, अक्षय प्रभु की अमृत छाया।
मिल जय-जय गुंजा रे, प्रभु द्वारे पधारे...
आस-श्वास सी दोऊ मैया, ममतामय आँचल दे छैंया।
सुत का भाग जगा रे, प्रभु द्वारे पधारे...
नेह नर्मदा संबंधों की, जन्म-जन्म के अनुबंधों की।
नाते 'सलिल' निभा रे, प्रभु द्वारे पधारे...
***************
लेबल:
चित्रगुप्त,
भजन,
संजीव,
bhajan,
chitraguptaji,
sanjiv
shri chitraguptaji:
चित्रगुप्त निरूपण:
संजीव
'चित्त-चित्त में गुप्त हैं, चित्रगुप्त परमात्म.
गुप्त चित्र निज देख ले,'सलिल' धन्य हो आत्म.'
- डॉ. प्रतिभा सक्सेना
आचार्य जी,
'गागर मे सागर' भरने की कला के प्रमाण हैं आपके दोहे । नमन करती हूँ !
उपरोक्त दोहे से अपनी एक कविता याद आ गई प्रस्तुत है -
कायस्थ
कोई पूछता है मेरी जाति
मुझे हँसी आती है
मैं तो काया में स्थित आत्म हूँ !
न ब्राह्मण, न क्षत्री, न वैश्य, न शूद्र ,
कोई जाति नहीं मेरी,
लोगों ने जो बना रखी हैं !
मैं नहीं जन्मा हूँ मुँह से,
न हाथ से, न पेट से, न पैर से,
किसी अकेले अंग से नहीं !
उस चिद्आत्म के पूरे तन
और भावन से प्रकटित स्वरूप- मैं,
सचेत, स्वतंत्र,निर्बंध!
सहज मानव, पूर्वाग्रह रहित!
मुझे परहेज़ नहीं नये विचारों से,
ढाल लेता हूँ स्वयं को
समय के अनुरूप !
पढ़ता-लिखता,
सोच-विचार कर
लेखा-जोखा करता हूँ
इस दुनिया का !
रचा तुमने,
चेतना का एक चित्र
जो गुप्त था तुम्हारे चित्त में,
ढाल दिया उसे काया में!
कायस्थ हूँ मैं!
प्रभु!अच्छा किया तुमने,
कि कोई जाति न दे
मुझे कायस्थ बनाया !
pratibha_saksena@yahoo.com
---------------
--अम्बरीष श्रीवास्तव
आदरणीय आचार्य जी ,
महराज चित्रगुप्त को नमन करते हुए मैं आदरणीया प्रतिभा जी से प्रेरित होकर की राह में चल रहा हूँ |
कायस्थ
मनुज योनि के सृजक हैं, ब्रह्माजी महराज |
सकल सृष्टि उनकी रची, उनमें जग का राज ||
मुखारबिंदु से ब्राह्मण, भुजा से क्षत्रिय पूत |
वैश्य जनम है उदर से, जंघा से सब शूद्र ||
धर्मराज व्याकुल हुए, लख चौरासी योनि |
संकट भारी हो रहा, लेखा देखे कौन |
ब्रह्माजी को तब हुआ, भगवन का आदेश |
ग्यारह शतकों तप करो , प्रकटें स्वयं यमेश ||
काया से उत्त्पन्न हैं, कहते वेद पुराण |
व्योम संहिता में मिले , कुल कायस्थ प्रमाण ||
चित्त साधना से हुए , गुप्त रखें सब काम |
ब्रह्माजी नें तब रखा, चित्रगुप्त शुभ नाम ||
ब्राह्मण सम कायस्थ हैं , सुरभित सम सुप्रभात |
ब्रह्म कायस्थ जगत में, कब से है विख्यात ||
प्रतिभा शील विनम्रता, निर्मल सरस विचार |
पर-उपकार सदाचरण, इनका है आधार ||
सबको आदर दे रहे, रखते सबका मान |
सारे जग के मित्र हैं, सदगुण की ये खान ||
दुनिया में फैले सदा, विद्या बिंदु प्रकाश |
एक सभी कायस्थ हों, मिलकर करें प्रयास ||
कायस्थों की कामना, सब होवें कायस्थ |
सूर्य ज्ञान का विश्व में, कभी ना होवे अस्त ||
सादर,
ambarishji@gmail.com --अम्बरीष श्रीवास्तव (Architectural Engineer)
91, Agha Colony, Civil Lines Sitapur (U. P.)Mobile 09415047020
संजीव
'चित्त-चित्त में गुप्त हैं, चित्रगुप्त परमात्म.
गुप्त चित्र निज देख ले,'सलिल' धन्य हो आत्म.'
- डॉ. प्रतिभा सक्सेना
आचार्य जी,
'गागर मे सागर' भरने की कला के प्रमाण हैं आपके दोहे । नमन करती हूँ !
उपरोक्त दोहे से अपनी एक कविता याद आ गई प्रस्तुत है -
कायस्थ
कोई पूछता है मेरी जाति
मुझे हँसी आती है
मैं तो काया में स्थित आत्म हूँ !
न ब्राह्मण, न क्षत्री, न वैश्य, न शूद्र ,
कोई जाति नहीं मेरी,
लोगों ने जो बना रखी हैं !
मैं नहीं जन्मा हूँ मुँह से,
न हाथ से, न पेट से, न पैर से,
किसी अकेले अंग से नहीं !
उस चिद्आत्म के पूरे तन
और भावन से प्रकटित स्वरूप- मैं,
सचेत, स्वतंत्र,निर्बंध!
सहज मानव, पूर्वाग्रह रहित!
मुझे परहेज़ नहीं नये विचारों से,
ढाल लेता हूँ स्वयं को
समय के अनुरूप !
पढ़ता-लिखता,
सोच-विचार कर
लेखा-जोखा करता हूँ
इस दुनिया का !
रचा तुमने,
चेतना का एक चित्र
जो गुप्त था तुम्हारे चित्त में,
ढाल दिया उसे काया में!
कायस्थ हूँ मैं!
प्रभु!अच्छा किया तुमने,
कि कोई जाति न दे
मुझे कायस्थ बनाया !
pratibha_saksena@yahoo.com
---------------
--अम्बरीष श्रीवास्तव
आदरणीय आचार्य जी ,
महराज चित्रगुप्त को नमन करते हुए मैं आदरणीया प्रतिभा जी से प्रेरित होकर की राह में चल रहा हूँ |
कायस्थ
मनुज योनि के सृजक हैं, ब्रह्माजी महराज |
सकल सृष्टि उनकी रची, उनमें जग का राज ||
मुखारबिंदु से ब्राह्मण, भुजा से क्षत्रिय पूत |
वैश्य जनम है उदर से, जंघा से सब शूद्र ||
धर्मराज व्याकुल हुए, लख चौरासी योनि |
संकट भारी हो रहा, लेखा देखे कौन |
ब्रह्माजी को तब हुआ, भगवन का आदेश |
ग्यारह शतकों तप करो , प्रकटें स्वयं यमेश ||
काया से उत्त्पन्न हैं, कहते वेद पुराण |
व्योम संहिता में मिले , कुल कायस्थ प्रमाण ||
चित्त साधना से हुए , गुप्त रखें सब काम |
ब्रह्माजी नें तब रखा, चित्रगुप्त शुभ नाम ||
ब्राह्मण सम कायस्थ हैं , सुरभित सम सुप्रभात |
ब्रह्म कायस्थ जगत में, कब से है विख्यात ||
प्रतिभा शील विनम्रता, निर्मल सरस विचार |
पर-उपकार सदाचरण, इनका है आधार ||
सबको आदर दे रहे, रखते सबका मान |
सारे जग के मित्र हैं, सदगुण की ये खान ||
दुनिया में फैले सदा, विद्या बिंदु प्रकाश |
एक सभी कायस्थ हों, मिलकर करें प्रयास ||
कायस्थों की कामना, सब होवें कायस्थ |
सूर्य ज्ञान का विश्व में, कभी ना होवे अस्त ||
सादर,
ambarishji@gmail.com --अम्बरीष श्रीवास्तव (Architectural Engineer)
91, Agha Colony, Civil Lines Sitapur (U. P.)Mobile 09415047020
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