menu

Drop Down MenusCSS Drop Down MenuPure CSS Dropdown Menu

मंगलवार, 25 अक्तूबर 2022

चित्रगुप्त

 लेख :

चित्रगुप्त रहस्य:
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
चित्रगुप्त सर्वप्रथम प्रणम्य हैं:
परात्पर परमब्रम्ह श्री चित्रगुप्त जी सकल सृष्टि के कर्मदेवता हैं, केवल कायस्थों के नहीं। उनके अतिरिक्त किसी अन्य कर्म देवता का उल्लेख किसी भी धर्म में नहीं है, न ही कोई धर्म उनके कर्म देव होने पर आपत्ति करता है। अतः, निस्संदेह उनकी सत्ता सकल सृष्टि के समस्त जड़-चेतनों तक है। पुराणकार कहता है: '
चित्रगुप्त प्रणम्यादौ वात्मानाम सर्व देहिनाम.''
अर्थात श्री चित्रगुप्त सर्वप्रथम प्रणम्य हैं जो आत्मा के रूप में सर्व देहधारियों में स्थित हैं.
आत्मा क्या है?
सभी जानते और मानते हैं कि 'आत्मा सो परमात्मा' अर्थात परमात्मा का अंश ही आत्मा है। स्पष्ट है कि श्री चित्रगुप्त जी ही आत्मा के रूप में समस्त सृष्टि के कण-कण में विराजमान हैं। इसलिए वे सबके पूज्य हैं सिर्फ कायस्थों के नहीं।
चित्रगुप्त निर्गुण परमात्मा हैं:
सभी जानते हैं कि परमात्मा और उनका अंश आत्मा निराकार है। आकार के बिना चित्र नहीं बनाया जा सकता। चित्र न होने को चित्र गुप्त होना कहा जाना पूरी तरह सही है। आत्मा ही नहीं आत्मा का मूल परमात्मा भी मूलतः निराकार है इसलिए उन्हें 'चित्रगुप्त' कहा जाना स्वाभाविक है। निराकार परमात्मा अनादि (आरंभहीन) तथा (अंतहीन) तथा निर्गुण (राग, द्वेष आदि से परे) हैं।
चित्रगुप्त पूर्ण हैं:
अनादि-अनंत वही हो सकता है जो पूर्ण हो। अपूर्णता का लक्षण आरम्भ तथा अंत से युक्त होना है। पूर्ण वह है जिसका क्षय (ह्रास या घटाव) नहीं होता। पूर्ण में से पूर्ण को निकल देने पर भी पूर्ण ही शेष बचता है, पूर्ण में पूर्ण मिला देने पर भी पूर्ण ही रहता है। इसे 'ॐ' से व्यक्त किया जाता है। दूज पूजन के समय कोरे कागज़ पर चन्दन, केसर, हल्दी, रोली तथा जल से ॐ लिखकर अक्षत (जिसका क्षय न हुआ हो आम भाषा में साबित चांवल)से चित्रगुप्त जी पूजन कायस्थ जन करते हैं।
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात पूर्णमुदच्यते पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते
पूर्ण है यह, पूर्ण है वह, पूर्ण कण-कण सृष्टि सब
पूर्ण में पूर्ण को यदि दें निकाल, पूर्ण तब भी शेष रहता है सदा।
चित्रगुप्त निर्गुण तथा सगुण दोनों हैं:
चित्रगुप्त निराकार-निर्गुण ही नहीं साकार-सगुण भी है। वे अजर, अमर, अक्षय, अनादि तथा अनंत हैं। परमेश्वर के इस स्वरूप की अनुभूति सिद्ध ही कर सकते हैं इसलिए सामान्य मनुष्यों के लिये वे साकार-सगुण रूप में प्रगट हुए वर्णित किये गए हैं। सकल सृष्टि का मूल होने के कारण उनके माता-पिता नहीं हो सकते। इसलिए उन्हें ब्रम्हा की काया से ध्यान पश्चात उत्पन्न बताया गया है. आरम्भ में वैदिक काल में ईश्वर को निराकार और निर्गुण मानकर उनकी उपस्थिति हवा, अग्नि (सूर्य), धरती, आकाश तथा पानी में अनुभूत की गयी क्योंकि इनके बिना जीवन संभव नहीं है। इन पञ्च तत्वों को जीवन का उद्गम और अंत कहा गया। काया की उत्पत्ति पञ्चतत्वों से होना और मृत्यु पश्चात् आत्मा का परमात्मा में तथा काया का पञ्च तत्वों में विलीन होने का सत्य सभी मानते हैं।
अनिल अनल भू नभ सलिल, पञ्च तत्वमय देह.
परमात्मा का अंश है, आत्मा निस्संदेह।।
परमब्रम्ह के अंश- कर, कर्म भोग परिणाम
जा मिलते परमात्म से, अगर कर्म निष्काम।।
कर्म ही वर्ण का आधार श्रीमद्भगवद्गीता में श्री कृष्ण कहते हैं: 'चातुर्वर्ण्यमयासृष्टं गुणकर्म विभागशः'
अर्थात गुण-कर्मों के अनुसार चारों वर्ण मेरे द्वारा ही बनाये गये हैं।
स्पष्ट है कि वर्ण जन्म पर आधारित नहीं था। वह कर्म पर आधारित था। कर्म जन्म के बाद ही किया जा सकता है, पहले नहीं। अतः, किसी जातक या व्यक्ति में बुद्धि, शक्ति, व्यवसाय या सेवा वृत्ति की प्रधानता तथा योग्यता के आधार पर ही उसे क्रमशः ब्राम्हण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र वर्ग में रखा जा सकता था। एक पिता की चार संतानें चार वर्णों में हो सकती थीं। मूलतः कोई वर्ण किसी अन्य वर्ण से हीन या अछूत नहीं था। सभी वर्ण समान सम्मान, अवसरों तथा रोटी-बेटी सम्बन्ध के लिये मान्य थे। सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक, आर्थिक अथवा शैक्षणिक स्तर पर कोई भेदभाव मान्य नहीं था। कालांतर में यह स्थिति पूरी तरह बदल कर वर्ण को जन्म पर आधारित मान लिया गया।
चित्रगुप्त पूजन क्यों और कैसे?
श्री चित्रगुप्त का पूजन कायस्थों में प्रतिदिन प्रातः-संध्या में तथा विशेषकर यम द्वितीया को किया जाता है। कायस्थ उदार प्रवृत्ति के सनातन (जो सदा था, है और रहेगा) धर्मी हैं। उनकी विशेषता सत्य की खोज करना है इसलिए सत्य की तलाश में वे हर धर्म और पंथ में मिल जाते हैं। कायस्थ यह जानता और मानता है कि परमात्मा निराकार-निर्गुण है इसलिए उसका कोई चित्र या मूर्ति नहीं है, उसका चित्र गुप्त है। वह हर चित्त में गुप्त है अर्थात हर देहधारी में उसका अंश होने पर भी वह अदृश्य है। जिस तरह खाने की थाली में पानी न होने पर भी हर खाद्यान्न में पानी होता है उसी तरह समस्त देहधारियों में चित्रगुप्त अपने अंश आत्मा रूप में विराजमान होते हैं।
चित्रगुप्त ही सकल सृष्टि के मूल तथा निर्माणकर्ता हैं:
सृष्टि में ब्रम्हांड के निर्माण, पालन तथा विनाश हेतु उनके अंश ब्रम्हा-महासरस्वती, विष्णु-महालक्ष्मी तथा शिव-महाशक्ति के रूप में सक्रिय होते हैं। सर्वाधिक चेतन जीव मनुष्य की आत्मा परमात्मा का ही अंश है। मनुष्य जीवन का उद्देश्य परम सत्य परमात्मा की प्राप्ति कर उसमें विलीन हो जाना है। अपनी इस चितन धारा के अनुरूप ही कायस्थजन यम द्वितीय पर चित्रगुप्त पूजन करते हैं। सृष्टि निर्माण और विकास का रहस्य: आध्यात्म के अनुसार सृष्टिकर्ता की उपस्थिति अनहद नाद से जानी जाती है। यह अनहद नाद सिद्ध योगियों के कानों में प्रति पल भँवरे की गुनगुन की तरह गूँजता हुआ कहा जाता है। इसे 'ॐ' से अभिव्यक्त किया जाता है। विज्ञान सम्मत बिग बैंग थ्योरी के अनुसार ब्रम्हांड का निर्माण एक विशाल विस्फोट से हुआ जिसका मूल यही अनहद नाद है। इससे उत्पन्न ध्वनि तरंगें संघनित होकर कण (बोसान पार्टिकल) तथा क्रमश: शेष ब्रम्हांड बना।
यम द्वितीया पर कायस्थ एक कोरा सफ़ेद कागज़ लेकर उस पर चन्दन, हल्दी, रोली, केसर के तरल 'ॐ' अंकित करते हैं। यह अंतरिक्ष में परमात्मा चित्रगुप्त की उपस्थिति दर्शाता है। 'ॐ' परमात्मा का निराकार रूप है। निराकार के साकार होने की क्रिया को इंगित करने के लिये 'ॐ' को सृष्टि की सर्वश्रेष्ठ काया मानव का रूप देने के लिये उसमें हाथ, पैर, नेत्र आदि बनाये जाते हैं। तत्पश्चात ज्ञान की प्रतीक शिखा मस्तक से जोड़ी जाती है। शिखा का मुक्त छोर ऊर्ध्वमुखी (ऊपर की ओर उठा) रखा जाता है जिसका आशय यह है कि हमें ज्ञान प्राप्त कर परमात्मा में विलीन (मुक्त) होना है।
बहुदेववाद की परंपरा:
इसके नीचे श्री के साथ देवी-देवताओं के नाम लिखे जाते हैं, फिर दो पंक्तियों में 9 अंक इस प्रकार लिखे जाते हैं कि उनका योग 9 बार 9 आये। परिवार के सभी सदस्य अपने हस्ताक्षर करते हैं और इस कागज़ के साथ कलम रखकर उसका पूजन कर दण्डवत प्रणाम करते हैं। पूजन के पश्चात् उस दिन कलम नहीं उठायी जाती। इस पूजन विधि का अर्थ समझें। प्रथम चरण में निराकार निर्गुण परमब्रम्ह चित्रगुप्त के साकार होकर सृष्टि निर्माण करने के सत्य को अभिव्यक्त करने के पश्चात् दूसरे चरण में निराकार प्रभु द्वारा सृष्टि के कल्याण के लिये विविध देवी-देवताओं का रूप धारण कर जीव मात्र का ज्ञान के माध्यम से कल्याण करने के प्रति आभार, विविध देवी-देवताओं के नाम लिखकर व्यक्त किया जाता है। ये देवी शक्तियां ज्ञान के विविध शाखाओं के प्रमुख हैं. ज्ञान का शुद्धतम रूप गणित है।
सृष्टि में जन्म-मरण के आवागमन का परिणाम मुक्ति के रूप में मिले तो और क्या चाहिए? यह भाव पहले देवी-देवताओं के नाम लिखकर फिर दो पंक्तियों में आठ-आठ अंक इस प्रकार लिखकर अभिव्यक्त किया जाता है कि योगफल नौ बार नौ आये व्यक्त किया जाता है। पूर्णता प्राप्ति का उद्देश्य निर्गुण निराकार प्रभु चित्रगुप्त द्वारा अनहद नाद से साकार सृष्टि के निर्माण, पालन तथा नाश हेतु देव-देवी त्रयी तथा ज्ञान प्रदाय हेतु अन्य देवियों-देवताओं की उत्पत्ति, ज्ञान प्राप्त कर पूर्णता पाने की कामना तथा मुक्त होकर पुनः परमात्मा में विलीन होने का समुच गूढ़ जीवन दर्शन यम द्वितीया को परम्परगत रूप से किये जाते चित्रगुप्त पूजन में अन्तर्निहित है। इससे बड़ा सत्य कलम व्यक्त नहीं कर सकती तथा इस सत्य की अभिव्यक्ति कर कलम भी पूज्य हो जाती है इसलिए कलम को देव के समीप रखकर उसकी पूजा की जाती है। इस गूढ़ धार्मिक तथा वैज्ञानिक रहस्य को जानने तथा मानने के प्रमाण स्वरूप परिवार के सभी स्त्री-पुरुष, बच्चे-बच्चियाँ अपने हस्ताक्षर करते हैं, जो बच्चे लिख नहीं पाते उनके अंगूठे का निशान लगाया जाता है। उस दिन कोई सांसारिक कार्य (व्यवसायिक, मैथुन आदि) न कर आध्यात्मिक चिंतन में लीन रहने की परम्परा है।
'ॐ' की ही अभिव्यक्ति अल्लाह और ईसा में भी होती है। सिख पंथ इसी 'ॐ' की रक्षा हेतु स्थापित किया गया। 'ॐ' की अग्नि आर्य समाज और पारसियों द्वारा पूजित है। सूर्य पूजन का विधान 'ॐ' की ऊर्जा से ही प्रचलित हुआ है। उदारता तथा समरसता की विरासत यम द्वितीया पर चित्रगुप्त पूजन की आध्यात्मिक-वैज्ञानिक पूजन विधि ने कायस्थों को एक अभिनव संस्कृति से संपन्न किया है। सभी देवताओं की उत्पत्ति चित्रगुप्त जी से होने का सत्य ज्ञात होने के कारण कायस्थ किसी धर्म, पंथ या सम्प्रदाय से द्वेष नहीं करते। वे सभी देवताओं, महापुरुषों के प्रति आदर भाव रखते हैं। वे धार्मिक कर्म कांड पर ज्ञान प्राप्ति को वरीयता देते हैं। इसलिए उन्हें औरों से अधिक बुद्धिमान कहा गया है. चित्रगुप्त जी के कर्म विधान के प्रति विश्वास के कारण कायस्थ अपने देश, समाज और कर्त्तव्य के प्रति समर्पित होते हैं। मानव सभ्यता में कायस्थों का योगदान अप्रतिम है। कायस्थ ब्रम्ह के निर्गुण-सगुण दोनों रूपों की उपासना करते हैं। कायस्थ परिवारों में शैव, वैष्णव, गाणपत्य, शाक्त, राम, कृष्ण, सरस्वती, लक्ष्मी, दुर्गा आदि देवी-देवताओं के साथ समाज सुधारकों दयानंद सरस्वती, आचार्य श्री राम शर्मा, सत्य साइ बाबा, आचार्य महेश योगी आदि का पूजन-अनुकरण किया जाता है। कायस्थ मानवता, विश्व तथा देश कल्याण के हर कार्य में योगदान करते मिलते हैं.
***
बाल गीत :
चिड़िया
*
चहक रही
चंपा पर चिड़िया
शुभ प्रभात कहती है
आनंदित हो
झूम रही है
हवा मंद बहती है
कहती: 'बच्चों!
पानी सींचो,
पौधे लगा-बचाओ
बन जाएँ जब वृक्ष
छाँह में
उनकी खेल रचाओ
तुम्हें सुनाऊँगी
मैं गाकर
लोरी, आल्हा, कजरी
कहना राधा से
बन कान्हा
'सखी रूठ मत सज री'
टीप रेस,
कन्ना गोटी,
पिट्टू या बूझ पहेली
हिल-मिल खेलें
तब किस्मत भी
आकर बने सहेली
नमन करो
भू को, माता को
जो यादें तहती है
चहक रही
चंपा पर चिड़िया
शुभ प्रभात कहती है
२५-१०-२०१४
***

मंगलवार, 6 जनवरी 2015

raakaam sammelan jaipur 27-28 Dec 2014

   
    
इनलाइन चित्र 2  राष्ट्रीय कायस्थ महापरिषद इनलाइन चित्र 1
मानव कल्याण हेतु समर्पित संस्थाओंमंदिरों व सज्जनों का परिसंघ 
पंजीयन क्रमांक0874@2013 
कार्यालय : 
 राष्ट्रीय अध्यक्ष: त्रिलोकी प्रसाद वर्मा रामसखी निवासपड़ाव पोखर लेनआमगोला
मुजफ्फरपुर-842002 बिहार०९४३१२ ३८६२३०६२१-२२४३९९९, trilokee.verma@gmail.com 
महामंत्रीइंजी. संजीव वर्मा 'सलिल',  
२०४विजय अपार्टमेन्टनेपियर टाउनजबलपुर४८२००१ मध्यप्रदेश ९४२५१ ८३२४४ ०७६१ २४१११३१,  salil.sanjiv@gmail.com  
कोषाध्यक्ष-प्रशासनिक सचिव: अरबिंदकुमार सिन्हा जे. ऍफ़. १/७१ब्लोक ६मार्ग १० राजेन्द्र नगर पटना ८०००१६,  ०९४३१० ७७५५५०६१२ २६८४४४४ arbindsinha@yahoo.com 
                    ब्लॉग  http://kayasthamahaparishad.blogspot.in/2014/12/smriti-geet_30.html  
           फेसबुकपेज https://www.facebook.com/groups/1482061668697045/?frefts
                             https://www.facebook.com/groups/713756695348916/     
  कायास्थित ईश काअंश हुआ कायस्थ ।
। सब सबके सहयोग सेहों उन्नत आत्मस्थ ।।
========================================== 
पत्र क्रमांक: ०१/महा/राकाम/२०१५                                      ६-१-२०१५  
प्रति :
१. समस्त पदाधिकारीराष्ट्रीय कायस्थ महापरिषद्। 
२. समस्त संबद्ध संस्थाएँराष्ट्रीय कायस्थ महापरिषद। 
३.  समस्त चित्रांश पत्रिकाएँ|
४. समस्त सम्बंधित प्रतिष्ठान|
विषय : राष्ट्रीय कायस्थ महापरिषद् की राष्ट्रीय सञ्चालन समिति/कार्यकारिणी समिति बैठक व वार्षिक आम सभा जयपुर दिनाँक २८-२९ दिसंबर २०१४  का संक्षिप्त कार्यवाही विवरण।
सन्दर्भ:  क्रमांक ५०१//महा/राकां/२०१५                              २०-१२-२०१४  
महोदय,
        वंदे मातरम।
     राष्ट्रीय कायस्थ परिषद १२ वाँ वार्षिक सम्मेलन : २७ - २८ दिसंबर२०१४
                                
सारांश :
राष्ट्रीय कायस्थ महापरिषद दिल्ली का १२ वाँ वार्षिक सम्मेलन २७-२८ दिसंबर २०१४ को पंचायती धर्मशाला जयपुर में राजस्थान फेडरेशन ऑफ़ कायस्थ एसोसिएशंस के तत्वावधान में संपन्न हुआ।  देश की सामजिक-राजनैतिक परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में कायस्थ समाज की भूमिका को परिणाममूलक बनाने, हिंदीभाषी तथा अहिंदीभाषी कायस्थों को एक साथ जोड़ने, कायस्थ संस्थाओं को अधिक प्रभावी बनाने तथा भ्रष्टाचार व आरक्षण के विरुद्ध संघर्ष करने का निर्णय लिया गया।   
संस्था को परिसंघ के रूप में विकसित करने, कायस्थ कैलेण्डर, कायस्थ पंचांग, कायस्थ डायरेक्टरी, चित्रगुप्त जी के अवतरण-पूजन, कायस्थों के संस्कारों, पर्वों आदि से सबंधी जानकारी प्रकाशित कर युवा पीढ़ी को संस्कारित करने, कायस्थ संस्थाओं में सहयोग वृद्धि, सदस्यता अभियान को गति देने, पंजीयन पूर्व के आजीवन सदस्यों की सदस्यता निरन्तरित करने, आगामी निर्वाचनों में कायस्थ उम्मीदवारों को समर्थन देने, नेताजी सुभाषचन्द्र बोस तथा स्व. लालबहादुर शास्त्री के निधन सबंधी सत्यता जानने हेतु आयोग गठित किये जाने संवैधानिक पदों पर नियुक्ति के समय कायस्थों को समुचित प्रतिनिधित्व दिये जाने, अंतरजाल पर ब्लॉग / वेब साइट / फेसबुक पेज के नियमित सञ्चालन  करने सम्बन्धी निर्णय लिये गये

इसके पूर्व दिनाँक २७ दिसंबर २०१४ को सञ्चालन समिति की बैठक रेलगाड़ियों के अत्यधिक विलम्ब से चलने के कारण अध्यक्ष महोदय के न पहुँच सकने पर वरिष्ठ उपाध्यक्ष डॉ. उमेशचन्द्र श्रीवास्तव कानपुर की अध्यक्षता तथा महामंत्री आचार्य संजीव 'सलिल' के सञ्चालन में  संपन्न हुई।  भगवान चित्रगुप्त की  वंदना के पश्चात बैठक में गत ६-७-२०१४ को कटक उड़ीसा में संपन्न बैठक में की गयी कार्यवाही की सम्पुष्टि की गयीपदाधिकारियों ने अपने प्रतिवेदन तथा प्रस्ताव प्रस्तुत किये।  महामंत्री  संजीव वर्मा 'सलिल' ने पारिवारिक विषमताओं के बावजूद अपने नागपुर, रायपुर, लखनऊ, कानपूर, इटावा तथा मैनपुरी का  भ्रमण करने की जानकारी दी। वरिष्ठ उपाध्यक्ष डॉ. श्रीवास्तव ने १० दिसंबर २०१४ को कानपुर में सम्पन्न विशाल प्रादेशिक कायस्थ सामूहिक विवाह एवं परिचय सम्मेलन की विस्तृत जानकारी दी 
निम्न प्रस्ताव सर्व सम्मति से पारित किये गये -
१ - महापरिषद के उपाध्यक्ष स्व. भगवत स्वरूप कुलश्रेष्ठ की बहुमूल्य सेवाओं को स्मरण करते हुए उनके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की गयी 
२- उपाध्यक्ष श्री दिनेश प्रसाद सिन्हा को गंभीर बीमारी से उबरने पर बधाई देते हुए विषम मौसम पधारने के लिये धन्यवाद दिया गया 
२ - महामंत्री की जीवनसंगिनी डॉ. साधना वर्मा की दीर्घ रुग्णता से मुक्त तथा पूर्ण स्वास्थ्य लाभ की कामना की गयी 
३ - उपाध्यक्ष डॉ. नीलमणि दास तथा उनके सहयोगियों को  ६-७-२०१४ के  कटक  सम्मेलन के सफल आयोजन हेतु बधाई दी गयी    
४-  कायस्थ समाज रायपुर द्वारा लगभग ११५० वैवाहिक जानकारियों की बृहत् वैवाहिक सूची  प्रकाशक तथा  स्थानीय सम्मेलन के आयोजक श्री आर. पी. श्रीवास्तव व् सहयोगियों के प्रति आभार व्यक्त किया गया 
५- कायस्थ महासभा लखनऊ द्वारा प्रकाशित की जा रही कायस्थ डायरेक्टरी प्रकाशन के प्रयास की सराहना करते हुए महापरिषद संबंधी जानकारी प्रेषण हेतु महामंत्री को अधिकृत किया गया 
६- जबलपुर स्थित महामंत्री कार्यालय में पूर्ण अभिलेख संधारित किये जाने, सहयोग  हेतु स्थानीय पदाधिकारी/कर्मचारी रखे जाने तथा कार्यालय को सक्षम बनाने  की आवश्यकता अनुभव करते हुए समुचित व्यवस्था यथाशीघ्र की जाए। 
७ - महापरिषद में अब तक नियुक्त पदाधिकारीगण  सक्रियता बढ़ायें तथा प्रति मास प्रगति की जानकारी अध्यक्ष व महामंत्री को दें 
८- भविष्य में पदाधिकारियों की नियुक्ति हेतु प्रस्ताव अंचल/प्रकोष्ठ के प्रभारी संयोजक के माध्यम से सदस्यता प्रपत्र व शुल्क सहित   प्रांतीय संयोजक / राष्ट्रीय उपाध्यक्ष द्वारा संस्तुत करने के बाद अध्यक्ष, वरिष्ठ उपाध्यक्ष व महामंत्री की समिति द्वारा सर्वसम्मति से निर्णीत किये जाएँ। 
९ - न लाभ न हानि के आधार पर कायस्थ कैलेंडर का प्रकाशन करने का दायित्व श्री  दिनेश सिन्हा उपाध्यक्ष उज्जैन के अनुरोध पर उन्हें दिया गया। वे इस हेतु सामग्री, विज्ञापन व धन संकलन, प्रयुक्त कागज़ की किस्म, मुद्रण, प्रतियों की संख्या, मूल्य निर्धारण, वितरण प्रक्रिया आदि का निर्धारण महामंत्री के निर्देशानुसार करेंगे इस कार्य हेतु महापरिषद कोई आर्थिक सहायता नहीं देगी। संगठन सचिव श्री अरुण सिन्हा ने अपनी पत्रिका में घोषित अनुसार अन्य कैलेंडर प्रकाशन की जानकारी देते हुए उसके यथावत क्रियान्वयन की अनुमति चाही जिसे सर्वसम्मति से मान्य किया गया 
१०- राष्ट्रीय कायस्थ महापरिषद के तत्वावधान में वरिष्ठ उपाध्यक्ष डॉ. उमेशचन्द्र श्रीवास्तव के  मार्गदर्शन में १० दिसंबर २०१४ को संपन्न हुए प्रादेशिक कायस्थ सामूहिक विवाह के लिये डॉ. उमेशचन्द्र श्रीवास्तव उपाध्यक्ष, श्रीमती सुमनलता श्रीवास्तव प्रभारी महिला प्रकोष्ठ, श्रीमती मीना  देवी श्रीवास्तव संयोजक महिला प्रकोष्ठ फतेहपुर, श्री अनूप श्रीवास्तव प्रदेश संयोजक, श्री आदित्य श्रीवास्तव  प्रदेश सचिव, सभी जिला संयोजकों अंजना निगम कानपूर, सुनील खरे उन्नाव, सुभाषिनी श्रीवास्तव कन्नौज, शिवप्रकाश श्रीवास्तव फतेहपुर, अयोध्याप्रसाद निगम हमीरपुर, अंजली श्रीवास्तव वाराणसी तथा समस्त सहयोगियों वर-वधु पक्षों एवं समाज के प्रति आभार व्यक्त किया गया 
११-  कायस्थ पंचांग, डायरेक्ट्री तथा अन्य प्रकाशनों के लिये सामग्री महामंत्री कार्यालय में भेजी जाने का निर्णय लिया गया। सामग्री के संपादन हेतु महामंत्री आवश्यकता के अनुसार साथियों का चयनकर, अंतिम रूप में सम्पादित सामग्री अनुमोदनार्थ समिति के समक्ष प्रस्तुत करेंगे। 
१२- प्रत्येक पदाधिकारी तथा सदस्य अपने कार्य / निवास क्षेत्र में कार्यरत सभी संस्थाओं, सभाओं, मंदिरों, धर्मशालाओं, शिक्षा संस्थाओं, सदस्यों, महापुरुषों प्रतिभाओं, आदि की जानकारी एकत्र कर महामंत्री को उपलब्ध करावें ताकि उनका वर्गीकरण और संपादन किया जा सके। 
१३- महापरिषद की वर्तमान सदस्यता सामान्य तथा आजीवन के अतिरिक्त  श्रेणियों में सदस्य बनाये जाने की आवश्यकता अनुभव की गयी इस हेतु प्रस्ताव महामंत्री को भेजे जाएँ।  महामंत्री सभी प्राप्त प्रस्तावों का अध्ययन कर अपनी अनुशंसा सहित आगामी बैठक में निर्णय हेतु प्रस्तुत करेंगे। 
१४- महापरिषद की गतिविधियों के नियमित प्रकाशन तथा सदस्यों तक पहुँचाने हेतु डॉ. उमेशचन्द्र श्रीवास्तव वरिष्ठ उपाध्यक्ष कानपूर तथा श्री  चारुचंद्र खरे बाँदा महामंत्री से तालमेल कर परिपत्र मुद्रण-प्रेषण की व्यवस्था स्थापित करेंगे
१५- महापरिषद से सम्बद्ध विवादास्पद मुद्दों पर अध्यक्ष तथा महामंत्री के निर्देशानुसार विधिक कार्यवाही करने हेतु श्री अरबिंद सिन्हा प्रशासनिक सचिव पटना तथा श्री अरुण कुमार माथुर सचिव जयपुर को अधिकृत किया गया
१६- न्यायालय विहित प्राधिकारी / उप जिलाधिकारी मैनपुरी द्वारा अखिल भारतीय कायस्थ महासभा सम्बन्धी विवाद पर दिए निर्णय के प्रकाश में न्यायालय द्वारा वैध निर्णीत समूह के प्रति सद्भावना व् सहयोगभाव व्यक्त किया गया
१७- श्री महेश निगम सचिव उज्जैन द्वारा प्रस्तुत गौ संवर्धन तथा पशुधन कल्याण योजना संबंधी प्रस्ताव के अध्ययन व कार्यवाही हेतु उन्हें प्रकोष्ठ प्रभारी नियुक्त किया गया। वे सहयोगी सदस्यों के नाम महामंत्री को सुझाएँगे तथा गतिविधि की जानकारी समय-समय पर देंगे
१८- श्री अम्बरीष सक्सेना अध्यक्ष कायस्थ चेरिटेबल ट्रस्ट जयपुर को तकनीकी प्रकोष्ठ प्रभारी नियुक्त किया गया। वे सहयोगी सदस्यों के नाम महामंत्री को सुझाएँगे तथा गतिविधि की जानकारी समय-समय पर देंगे
१९- वर्ल्ड कायस्थ कांफ्रेंस १५-३-२०१५ में अध्यक्ष श्री त्रिलोकीप्रसाद वर्मा को उपाध्यक्ष मनोनीत किये जाने पर संयोजक श्री प्रकाशचंद्र सक्सेना हैदराबाद के प्रति धन्यवाद प्रस्ताव पारित किया गया 
२०- १४-३-२०१५ को दिल्ली में कार्यकारिणी बैठक आयोजित करने तथा वर्ल्ड कायस्थ कॉन्फरेंस में सहभागिता कर उसे सफल बनाने का निर्णय सर्व सम्मति से हुआ 
२१- भिलाई तथा कटक में प्रस्तावों के परिपालन में  पंजीकरण के पूर्व से आजीवन सदस्य रहे निम्न पदाधिकारियों के आवेदन पर उनकी आजीवन सदस्यता निरन्तरित की गयी-  श्री त्रिलोकी प्रसाद  वर्मा मुजफ्फरपुर, डॉ. उमेशचन्द्र श्रीवास्तव कानपूर, श्री संजीव वर्मा 'सलिल' जबलपुर, डॉ. साधना वर्मा जबलपुर, श्री अरबिंद कुमार सिन्हा पटना, श्री चारुचन्द्र खरे बाँदा, श्री अरुण श्रीवास्तव 'विनीत' भिलाई। उक्त सभी अपने सदस्यता आवेदन भरकर २ चित्रों के साथ महामंत्री को दें ताकि उनके नाम आजीवन सदस्यता पंजी में प्रविष्ट किये जा सकें  

महामंत्री द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ बैठक समाप्त हुई
सम्मेलन : 
Displaying DSC_5333.JPG
 Displaying DSC_5318.JPG
Displaying DSC_5346.JPG Displaying DSC_5333.JPG
 Displaying SKM_5449.JPG
 Displaying SKM_5369.JPG

२८ दिसंबर २०१४ को अपरान्ह पंचायती धर्मशाला सभागार में कायस्थ महापरिषद ध्वज वंदना, अतिथि स्वागत तथा देवाधिदेव श्री चित्रगुप्त जी के पूजार्चन पश्चात आयोजित सम्मेलन में महापरिषद सञ्चालन समिति की कार्यवाही  की पुष्टि की गई।समस्त अतिथियों का श्रीफल स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मान किया गया। ततपश्चात 'स्वस्थ्य प्रजातंत्र  में भ्रष्टाचार एवं जातिवाद घातक' विषय पर संगोष्ठी में स्थानीय प्रतिनिधियों सर्व  श्रीआर. पी माथुर से.नि. मुख्य अभियंता अध्यक्ष बिजासन माता यात्रा समिति, एम. एस. भटनागर अध्यक्ष भटनागर सभा, गोविन्द स्वरूप माथुर, लाडलीमोहन माथुर अध्यक्ष चित्रांश हितकारिणी सभा, गोपीमोहन माथुर अध्यक्ष चित्रांश क्लब, दत्त माथुर अध्यक्ष कायस्थ सभा पश्चिम, देवेंद्र मिलन, गिरिधर माथुर, श्रीमती निर्मलेश माथुर आदि ने विचार व्यक्त किये। 
तत्पश्चात महापरिषद के राष्ट्रीय पदाधिकारियों सर्व श्री महेश निगम सचिव उज्जैन, अरुण श्रीवास्तव 'विनीत' संगठन सचिव भिलाई, अरबिंद सिन्हा कोषध्यक्ष पटना, दिनेश कुमार माथुर संयुक्त महामंत्री जयपुर, दिनेश प्रसाद सिन्हा उपाध्यक्ष उज्जैन, चारुचन्द्र खरे उपाध्यक्ष बाँदा, श्री कैलाशपति सहाय उप समन्वयक कोटा ने विषय के विविध पक्षों पर विचार प्रस्तुत किये। 
महामंत्री आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने भगवान चित्रगुप्त द्वारा सृष्टि उत्पत्ति तथा सञ्चालन, जाति, वर्ण, वंश, अल्ल आदि के निर्माण, जाति तथा जातिवाद में अंतर आदि पर प्रकाश डालते हुए भ्रष्टाचार के विरोध को कायस्थवाद का मूल निरूपित किया तथा राजस्थान फेडरेशन ऑफ़ कायस्थ सोसायटीज के प्रति सम्मेलन  के  सुचारु आयोजन हेतु  आभार प्रगट किया 
डॉ. उमेशचन्द्र श्रीवास्तव वरिष्ठ उपाध्यक्ष कानपुर ने समाज के सामने उपस्थित परिस्थितियों की जटिलता का विश्लेषण करते हुए युवाओं को जोड़ने की उपादेयता प्रतिपादित की। 
अध्यक्ष श्री त्रिलोकीप्रसाद वर्मा मुज़्ज़फ़रपुर ने महापरिषद के संस्थापक स्व. लोकेश्वरनाथ सक्सेना को श्रद्धांजलि देते हुए, प्रथम अध्यक्ष श्री अरविन्द कुमारसंभव के योगदान की प्रशंसा की तथा समाज के हित में उनसे साथ आकर योगदान करने का आवाहन किया। संगोष्ठी का सफल सञ्चालन श्री अरूण कुमार माथुर सचिव जयपुर ने किया।
संजीव वर्मा 'सलिल' को चंचरीक सम्मान 
चंचरीक साहित्य संवर्धन संस्थान जयपुर द्वारा दिवंगत महाकवि जगमोहन प्रसाद सक्सेना चंचरीक की स्मृति में सूचना केंद्र राजस्थान सरकार के भव्य सभागार में आयोजित समारोह में राष्ट्रीय कायस्थ महापरिषद के महामंत्री आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' को उनकी महत्वपूर्ण साहित्यिक सेवाओं के लिए राजस्थान के पूर्व राज्यपाल व मुख्य न्यायाधिपति राजस्थान उच्च न्यायालय  श्री नवरंग टिवरेवाल  सुविख्यात साहित्यकार श्री  सोहनलाल रामरंग दिल्ली के कर कमलों से चंचरीक सम्मान से सम्मानित किया गया। इस अवसर पर डॉ. रघुनाथ प्रसाद 'उमंग' तथा सुकवि देवेन्द्र मधुकर विशिष्ट अतिथि के रूप में सम्मिलित थे। महापरिषद के  पदाधिकारियों ने इस उपलब्धि हेतु श्री सलिल को बधाई दी
कायस्थों का नव तीर्थ : श्री चित्रगुप्त ज्ञान मंदिर बापू नगर जयपुर 
२९ दिसंबर को अध्यक्ष श्री त्रिलोकी प्रसाद वर्मा, महामंत्री श्री संजीव वर्मा 'सलिल' तथा संयुक्त महामंत्री श्री दिनेश माथुर ने बापू बाजार जयपुर स्थित श्री चित्रगुप्त ज्ञान मंदिर में भगवान चित्रगुप्त के दिव्य रूप तथा भव्य भवन के दर्शन किये। कोषाध्यक्ष श्री जगदंबा प्रसाद माथुर ने भवन में उपलब्ध सुविधाओं तथा व्यवस्थाओं की जानकारी दी तथा अतिथियों को स्मारिका भेंट की। 
विभिन्न पदाधिकारियों से प्राप्त सुझावों पर अध्यक्ष महोदय के निर्देशानुसार निम्न जनों को सदस्यता प्रपत्र तथा शुल्क प्राप्त होने तथा आगामी बैठक में संपुष्ट किये जाने की प्रत्याशा में उनके समक्ष दर्शित पदों  हेतु प्रस्तावित किया जाता है: 
सर्व चित्रांश 
१. श्री अनूप बरतरिया जयपुर                  - संरक्षक  
२. श्री अवध बिहारी माथुर जयपुर            - सलाहकार 
३. श्री पंकज श्रीवास्तव कानपूर               - सलाहकार 
   
संजीव वर्मा 'सलिल' महामंत्री
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil' 
               
संलग्नक: लैटर पैड प्रारूप :


शुक्रवार, 2 जनवरी 2015

baatcheet:

" सचिन सक्सेना " मध्य भारत कायस्थ परिषद
9425092691

कैसी रही आपकी जयपुर की मीटिंग ! लम्बे समय से राष्ट्रिय कायस्थ महापरिषद की कोई गतिविधि नही हो रही है! अनुपम जी वर्मा जी से भी कोई सन्देश प्राप्त  हुए लंबा समय हुआ है कृपया संपर्क में रखिये तथा मेरे लिए कुछ हो तो अवश्य बताये !
मेरा ऐसा मानना है की शायद या तो कार्य नही हो रहा है या कार्यों के प्रचार में हम पिछड़ रहे है ! हम प्रचार प्रसार के लिए हाईटेक तरीके अपना सकते है और अपनी वेबसाइड भी बना सकते हैं और पुरे देश में प्रचारित कर सकते हैं ! इससे सम्पर्क और नाम दोनों ही बढेगा ! 
हम लोग मोबाइल वेब डाइरेक्टरी भी बना सकते हैं जिसमे पुरे भारत के कायस्थ बन्धुओं के नम्बर पोस्ट कर सकते हैं !
वेब साइड पर अपने पहले हो चुके कार्य तथा भविष्य के कार्य और योजनाये भी डाल सकते हैं ! साथ ही RKM का फेसबुक पेज भी बना कर संचालित कर सकते हैं !

On 1 Jan 2015 23:04, "Arbind Sinha" <arbind.sinha@yahoo.com>

nav varsh...

Govind Johri bhoramdev@gmail.com



मुझेArbindARUNKumarArunUmeshVirendraTrilokeeKailashpati,
KamalCharuKharecharuDINESHMANISHCAGovindpsrivast.,
RakeshBrajendraAmitabh801HarendraRajeshSachinSantosh,
bhatnagarkgsshrivastav.sha.
    Dear beloved all,
any how for your happiness wishing you and your family the very prosperous, charming flourishing successful year and coming ahead many more years!..........

but once we should think is it right to adopt globally accepted new year and forget our own ultra accuracy having calendar just for some ease !.......

I don't say to discard or disrespect others but don't forget your calendar If you think you know your hindi calendar please mesmerize name of Hindi months just now and if not please purchase a Hindi month calendar right know for correcting your and possible generation mistakes too in future. 

please co-operate ......

गुरुवार, 1 जनवरी 2015

tribute:

स्मरण: व्यक्तित्व, महापुरुष, वैज्ञानिक


an outstanding Indian Physicist & father of "Bose-Einstein Theory" Padma Vibhushan Shri Satyendra Nath Bose ji. 


shri chitraguptaji



  






dr. rajendra prasad

स्मरण:
३ दिसम्बर को देश के प्रथम रास्ट्रपति चित्रांश डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी का, सच्चे देश भक्त चित्रांश श्री खुदीराम बोस का, के.पी.ट्रस्ट के संस्थापक चित्रांश श्री मुंशी कालीप्रशाद कुलभास्कर जी का जन्म दिन है. तीन महान कायस्थ विभुतियो का जनम दिन एक ही दिन अंतरराष्ट्रिय चित्रांश के रूप में अवश्य मनाये !
डॉ. राजेंद्र प्रसाद

जन्मदिन / डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद (3 दिसम्बर)
---------------------------------------------
भारत के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न बाबू राजेन्द्र प्रसाद का जन्म बिहार के छपरा जिले के गाँव जीरादेई के कायस्थ परिवार मे हुआ था। उनके दादा हथुआ रियासत के दीवान थे। पिता महादेव सहाय संस्कृत एवं फारसी के विद्वान थे सो बचपन मे उन्होने एक मौलवी साहब को बालक राजेन्द्र को फारसी सिखाने पर लगा दिया। छपरा के जिला स्कूल , पटना की टी० के० घोष अकादमी मे पढाई के बाद 1902 में उन्होंने कोलकाता के प्रसिद्ध प्रेसिडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया। 1915 में उन्होंने स्वर्ण पदक के साथ विधि परास्नातक की परीक्षा पास की और लॉ मे डॉक्ट्रेट किया। वे अंग्रेजी, हिन्दी, उर्दू, फ़ारसी व बंगाली गुजराती भोजपुरी , संस्कृत आदि अनेक भाषाओं का ज्ञान था । भारत मित्र, भारतोदय, कमला आदि में उनके लेख छपते थे। उन्होंने हिन्दी के “देश” और अंग्रेजी के “पटना लॉ वीकली” समाचार पत्र का सम्पादन भी किया था। चम्पारण में गान्धीजी के तथ्य अन्वेषण समूह मे वे प्रमुख थे । भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दो बार अध्यक्ष चुने गये। संविधान निर्माण मे उनकी भूमिका इतनी अधिक थी कि भारतीय संविधान उन्हे पूरा याद हो गया था। उन्होने अपनी आत्मकथा, बापू के कदमों में , इण्डिया डिवाइडेड , सत्याग्रह ऐट चम्पारण आदि अनेक पुस्तकों की रचना की थी । सितम्बर 1962 में राष्ट्रपति पद से अवकाश ग्रहण करते ही राष्ट्र ने उन्हें "भारत रत्न" की सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान से सम्मानित किया। उनके जीवन का अंतिम पड़ाव पटना का सदाकत आश्रम था, जहां पर 28 फ़रवरी 1963 को उनकी मृत्यु हुई।