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शनिवार, 21 मार्च 2009

geet:

गीत

चलो हम सूरज उगायें

आचार्य संजीव 'सलिल'

चलो! हम सूरज उगायें...

सघन तम से क्यों डरें हम?
भीत होकर क्यों मरें हम?
मरुस्थल भी जी उठेंगे-
हरितिमा मिल हम उगायें....

विमल जल की सुनें कल-कल।
भुला दें स्वार्थों की किल-किल।
सत्य-शिव-सुंदर रचें हम-
सभी सब के काम आयें...

लाये क्या?, ले जायेंगे क्या?,
किसी के मन भाएंगे क्या?
सोच यह जीवन जियें हम।
हाथ-हाथों से मिलायें...

आत्म में विश्वात्म देखें।
हर जगह परमात्म लेखें।
छिपा है कंकर में शंकर।
देख हम मस्तक नवायें...

तिमिर में दीपक बनेंगे।
शून्य में भी सुनेंगे।
नाद अनहद गूँजता  जो
सुन 'सलिल' सबको सुनायें...

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शुक्रवार, 20 मार्च 2009

muktika:

मुक्तिका 

तुम

आचार्य संजीव 'सलिल'
*
सारी रात जगाते हो तुम
नज़र न फिर भी आते हो तुम.

थक कर आँखें बंद करुँ तो-
सपनों में मिल जाते हो तुम.

पहले मुझ से आँख चुराते,
फिर क्यों आँख मिलाते हो तुम?

रूठ मौन हो कभी छिप रहे,
कभी गीत नव गाते हो तुम

नित नटवर नटनागर नटखट 
नचते नाच नचाते हो तुम

'सलिल' बाँह में कभी लजाते,
कभी दूर हो जाते हो तुम.



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मंगलवार, 17 मार्च 2009

चित्रगुप्त वंदना : सलिल

दोहा सलिला:

चित्र-चित्र में गुप्त जो, उसको विनत प्रणाम।
वह कण-कण में रम रहा, तृण-तृण उसका धाम ।

विधि-हरि-हर उसने रचे, देकर शक्ति अनंत।
वह अनादि-ओंकार है, ध्याते उसको संत।

कल-कल,छन-छन में वही, बसता अनहद नाद।
कोई न उसके पूर्व है, कोई न उसके बाद।

वही रमा गुंजार में, वही थाप, वह नाद।
निराकार साकार वह, उससे सृष्टि निहाल।

'सलिल' साधना का वही, सिर्फ़ सहारा एक।
उस पर ही करता कृपा, काम करे जो नेक।

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मुक्तक: दिल की बातें

मुक्तक

दिल को दिल ने जब पुकारा, दिल तड़प कर रह गया।
दिल को दिल का था सहारा, दिल न कुछ कह कह गया।
दिल ने दिल पर रखा पत्थर, दिल से आँखे फेर लीं-
दिल ने दिल से दिल लगाया, दिल्लगी दिल सह गया।

दिल लिया दिल बिन दिए ही, दिल दिया बिन दिल लिए।
देखकर यह खेल रोते दिल बिचारे लब सिए।
फिजा जहरीली कलंकित चाँद पर लानत 'सलिल'-
तुम्हें क्या मालूम तुमने तोड़ कितने दिल दिए।

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सोमवार, 16 मार्च 2009

सलिल की कलम से...

मुक्तक
सलिल
*
रंग बिरंगी इस दुनिया के सारे रंग फीके पड़ते।

इठलाते जो फूल आज, वे कल बेबस होकर झड़ते।

झगड़ रहे हैं फ़िर भी क्यों हम?, कोई मुझको बतलाये-

'सलिल' सत्य को जाने बिन ही, क्यों जिद करते, क्यों अड़ते?
*

shri chitragupta bhajan:

श्री भगवान
संजीव
*
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...

जब मेरे प्रभु जग में आवें, नभ से देव सुमन बरसावें।
कलम-दवात सुशोभित कर में, देते अक्षर ज्ञान
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...

चित्रगुप्त प्रभु शब्द-शक्ति हैं, माँ सरस्वती नाद शक्ति हैं।
ध्वनि अक्षर का मेल ऋचाएं, मन्त्र-श्लोक विज्ञान
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...

मातु नंदिनी आदिशक्ति हैं। माँ इरावती मोह-मुक्ति हैं.
इडा-पिंगला रिद्धि-सिद्धिवत, करती जग-उत्थान
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...

कण-कण में जो चित्र गुप्त है, कर्म-लेख वह चित्रगुप्त है।
कायस्थ है काया में स्थित, आत्मा महिमावान
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...

विधि-हरि-हर रच-पाल-मिटायें, अनहद सुन योगी तर जायें।
रमा-शारदा-शक्ति करें नित, जड़-चेतन कल्याण
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...

श्यामल मुखछवि, रूप सुहाना, जैसा बोना वैसा पाना।
कर्म न कोई छिपे ईश से, 'सलिल' रहे अनजान
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...

लोभ-मोह-विद्वेष-काम तज, करुणासागर प्रभु का नाम भज।
कर सत्कर्म 'शान्ति' पा ले, दुष्कर्म अशांति विधान
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...

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रविवार, 15 मार्च 2009

राष्ट्रीय कायस्थ महापरिषद : एक नज़र

राष्ट्रीय कायस्थ महापरिषद : एक नज़र

१ गठन : २३ जून २००३, जयपुर में आयोजित अखिल भारतीय कायस्थ कार्यकर्त्ता सम्मलेन में।

२ स्वरुप : यह देश-विदेश में कार्यरत कायस्थ संस्थाओं, न्यासों, समितियों, मंदिरों, पत्र-पत्रिकाओं आदि का परिसंघ है। इसका संविधान अध्यक्षीय प्रणाली पर आधारित है। हर ५ वर्ष बाद सभी सम्बद्ध सभाओं के वैध प्रतिनिधि राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव करते हैं। निर्वाचित अध्यक्ष अन्य पदाधिकारियों तथा कार्य कारिणी का मनोनयन करता है। परिक्षेत्र अध्यक्ष ( चैप्टर चेयरमैन ) तथा युवा महत्वपूर्ण घटक हैं। राष्ट्रीय अध्यक्ष को परामर्श देने के लिए मार्ग दर्शक मंडल होता है। विधायिका (साधारण सभा) तथा kaarya paalika ( राष्ट्रीय कार्यकारिणी ) के माध्यम से गतिविधियों का सञ्चालन होता है।
३ उद्देश्य : उक्त सभी को सामाजिक समरसता, राष्ट्रीयता, सहयोग, सद्भाव तथा समन्वय के लिए एक संयुक्त मंच प्रदान करना। अन्य संथाओं के कार्यक्रमों में सहयोग देना तथा अपनर कार्यक्रमों में सबका सहयोग लेना। शासन। समाज तथा प्रेस को कायस्थों के संख्या बल, बौद्धिक क्षमता, आर्थिक स्थिति, सामाजिक मान्यता तथा सर्वतोमुखी योगदान की अनिभूति करना।

४ : सर्व धर्म समभाव, सर्वे भवन्तु सुखिनः, वसुधैव कुटुम्बकम, विश्विक नीडंआदि आदर्शों को मूर्त करने के लिए स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय तथा वैश्विक स्टार पर गतिविधियों का सञ्चालन, नियंत्रण तथा आयोजन करना और कराना। विश्व शान्ति, विश्व न्याय, विश्व ज्ञान तथा विव्श्व मानव की परिकल्पना को मूर्त कराना। इस हेतु चित्रगुप्त मंदिरों का निर्माण, जीर्णोद्धार तथा सञ्चालन करना।

५ सदस्यता : संरक्षक ११००/- , पदाधिकारी २५०/- वार्षिक, सम्बद्धता - राष्ट्रीय ५०१/-, प्रांतीय २५१/-, स्थानीय ५१/-, पत्रिका २१/-, धार्मिक संसथान ५/-।

६ मताधिकार : उक्तानुसार क्रमशः राष्ट्रीय १५, प्रांतीय १०, स्थानीय ५ तथा anya १ मत

७ कार्य काल : राष्ट्रीय अध्यक्ष, वरिष्ठ उपाध्यक्ष, महामंत्री लगातार २ कार्यकाल से अधिक अपने पद पर नहीं रह सकेंगे।

८ साधारण सभा : संचालक मंडल के सदस्य, सम्बद्ध सभाओं के प्रतिनिधि, मार्ग दर्शक मंडल, कार्य कारिणी सदस्य
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समाचार: नेताजी सुभाष चन्द्र बोस पर गठित मुख़र्जी कमीशन की रिपोर्ट सामने लाओ

समाचार: नेताजी सुभाष चन्द्र बोस पर गठित मुख़र्जी कमीशन की रिपोर्ट सामने लाओ

'नेताजी सुभाष चंद्र बोस औया आजाद हिंद सेना के अद्वितीय संघर्ष और बलिदान के कारण ही भारत को स्वतंत्रता मिली। पश्चिमी देशों द्वारा नेताजी को द्वितीय विश्व युद्ध का अपराधी घोषित कर देने और कांग्रेस दल द्वारा सत्ता के लोभ में इस नीति का समर्थन करने के कारण नेताजी को विवश होकर लापता रहना पड़ा तथा कांग्रेस सत्ता सुख भोगती रही। स्व जवाहर लाल नेहरू ने लोर्ड माउंटबेटन के दबाब में नेताजी को युद्ध अपराधी मानते हुए मिलते ही इंग्लैंड को सौंपने की गुप्त संधि पर हस्ताक्षर कर दिए तथा इसे जनता से छिपाया गया।

आजादी के बाद से ही नेताजी के लापता होने का सच सामने लाने की मांग होती रही है। इस सम्बन्ध में गठित पहले दो आयोगों पर सरकारी नीति के अनुरूप रपट तैयार करने के आरोपों के कारण मुखर्जी आयोग का गठन किया गया था। मुखर्जी आयोग ने पाया की जिस विमान की दुर्घटना में नेताजी की मृत्यु होने का प्रचार किया गया था वह वास्तव में कभी उडा ही नहीं था। मुखर्जी आयोग की पूरी रपट आगामी आम चुनाव के पहले जनता के सामने लाई जाने की मांग करते हुए सुभाष चन्द्र बोस राष्ट्रीय विचार मंच के अत्याग्रह समिति संयोजक श्री सुरेन्द्र नाथ चित्रांशी, कानपूर तथा राष्ट्रीय कायस्थ महापरिषद के वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री संजीव 'सलिल' ने कहा है के अहिंसा कभी राष्ट्र-धर्म या राज-धर्म नहीं हो सकता। कर्न्ति में रक्तपात अनिवार्य होता है। अहिंसा से आज़ादी लेने का भ्रम फैला कर गांधीवादियों ने छल किया तथा सत्याग्रहों के नाम पर कानून तोड़ने की जिस प्रवृत्ति को प्रोत्साहन दिया वही आज की समस्याओं का कारण है।

राष्ट्र पर आक्रमण, संवैधानिक सत्ता के विरुद्ध विप्लव, विदेशी शासन से संघर्ष आदि परिस्थतियों में हिंसा न केवल उचित अपितु अपरिहार्य भी होती है। नेताजी ने यही किया। राम भवन अयोध्या से प्राप्त ग्म्नामी बाबा के २८ बक्सों में मिले समान को जिला कोषालय फैजाबाद से निकालकरजनता के सामने रखा जाना आवश्यक है। तभी यह सुनिश्चित हो सकेगा की वे नेताजी थे या नहीं?

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