मुक्तक
सलिल
*
रंग बिरंगी इस दुनिया के सारे रंग फीके पड़ते।
इठलाते जो फूल आज, वे कल बेबस होकर झड़ते।
झगड़ रहे हैं फ़िर भी क्यों हम?, कोई मुझको बतलाये-
'सलिल' सत्य को जाने बिन ही, क्यों जिद करते, क्यों अड़ते?
*
सलिल
*
रंग बिरंगी इस दुनिया के सारे रंग फीके पड़ते।
इठलाते जो फूल आज, वे कल बेबस होकर झड़ते।
झगड़ रहे हैं फ़िर भी क्यों हम?, कोई मुझको बतलाये-
'सलिल' सत्य को जाने बिन ही, क्यों जिद करते, क्यों अड़ते?
*
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें