menu

Drop Down MenusCSS Drop Down MenuPure CSS Dropdown Menu

शुक्रवार, 20 मार्च 2009

muktika:

मुक्तिका 

तुम

आचार्य संजीव 'सलिल'
*
सारी रात जगाते हो तुम
नज़र न फिर भी आते हो तुम.

थक कर आँखें बंद करुँ तो-
सपनों में मिल जाते हो तुम.

पहले मुझ से आँख चुराते,
फिर क्यों आँख मिलाते हो तुम?

रूठ मौन हो कभी छिप रहे,
कभी गीत नव गाते हो तुम

नित नटवर नटनागर नटखट 
नचते नाच नचाते हो तुम

'सलिल' बाँह में कभी लजाते,
कभी दूर हो जाते हो तुम.



****************************

कोई टिप्पणी नहीं: