मुक्तक
दिल को दिल ने जब पुकारा, दिल तड़प कर रह गया।
दिल को दिल का था सहारा, दिल न कुछ कह कह गया।
दिल ने दिल पर रखा पत्थर, दिल से आँखे फेर लीं-
दिल ने दिल से दिल लगाया, दिल्लगी दिल सह गया।
दिल लिया दिल बिन दिए ही, दिल दिया बिन दिल लिए।
देखकर यह खेल रोते दिल बिचारे लब सिए।
फिजा जहरीली कलंकित चाँद पर लानत 'सलिल'-
तुम्हें क्या मालूम तुमने तोड़ कितने दिल दिए।
****************************************
दिल को दिल ने जब पुकारा, दिल तड़प कर रह गया।
दिल को दिल का था सहारा, दिल न कुछ कह कह गया।
दिल ने दिल पर रखा पत्थर, दिल से आँखे फेर लीं-
दिल ने दिल से दिल लगाया, दिल्लगी दिल सह गया।
दिल लिया दिल बिन दिए ही, दिल दिया बिन दिल लिए।
देखकर यह खेल रोते दिल बिचारे लब सिए।
फिजा जहरीली कलंकित चाँद पर लानत 'सलिल'-
तुम्हें क्या मालूम तुमने तोड़ कितने दिल दिए।
****************************************
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें