राष्ट्रीय कायस्थ महापरिषद : एक नज़र
१ गठन : २३ जून २००३, जयपुर में आयोजित अखिल भारतीय कायस्थ कार्यकर्त्ता सम्मलेन में।
२ स्वरुप : यह देश-विदेश में कार्यरत कायस्थ संस्थाओं, न्यासों, समितियों, मंदिरों, पत्र-पत्रिकाओं आदि का परिसंघ है। इसका संविधान अध्यक्षीय प्रणाली पर आधारित है। हर ५ वर्ष बाद सभी सम्बद्ध सभाओं के वैध प्रतिनिधि राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव करते हैं। निर्वाचित अध्यक्ष अन्य पदाधिकारियों तथा कार्य कारिणी का मनोनयन करता है। परिक्षेत्र अध्यक्ष ( चैप्टर चेयरमैन ) तथा युवा महत्वपूर्ण घटक हैं। राष्ट्रीय अध्यक्ष को परामर्श देने के लिए मार्ग दर्शक मंडल होता है। विधायिका (साधारण सभा) तथा kaarya paalika ( राष्ट्रीय कार्यकारिणी ) के माध्यम से गतिविधियों का सञ्चालन होता है।
३ उद्देश्य : उक्त सभी को सामाजिक समरसता, राष्ट्रीयता, सहयोग, सद्भाव तथा समन्वय के लिए एक संयुक्त मंच प्रदान करना। अन्य संथाओं के कार्यक्रमों में सहयोग देना तथा अपनर कार्यक्रमों में सबका सहयोग लेना। शासन। समाज तथा प्रेस को कायस्थों के संख्या बल, बौद्धिक क्षमता, आर्थिक स्थिति, सामाजिक मान्यता तथा सर्वतोमुखी योगदान की अनिभूति करना।
४ : सर्व धर्म समभाव, सर्वे भवन्तु सुखिनः, वसुधैव कुटुम्बकम, विश्विक नीडंआदि आदर्शों को मूर्त करने के लिए स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय तथा वैश्विक स्टार पर गतिविधियों का सञ्चालन, नियंत्रण तथा आयोजन करना और कराना। विश्व शान्ति, विश्व न्याय, विश्व ज्ञान तथा विव्श्व मानव की परिकल्पना को मूर्त कराना। इस हेतु चित्रगुप्त मंदिरों का निर्माण, जीर्णोद्धार तथा सञ्चालन करना।
५ सदस्यता : संरक्षक ११००/- , पदाधिकारी २५०/- वार्षिक, सम्बद्धता - राष्ट्रीय ५०१/-, प्रांतीय २५१/-, स्थानीय ५१/-, पत्रिका २१/-, धार्मिक संसथान ५/-।
६ मताधिकार : उक्तानुसार क्रमशः राष्ट्रीय १५, प्रांतीय १०, स्थानीय ५ तथा anya १ मत
७ कार्य काल : राष्ट्रीय अध्यक्ष, वरिष्ठ उपाध्यक्ष, महामंत्री लगातार २ कार्यकाल से अधिक अपने पद पर नहीं रह सकेंगे।
८ साधारण सभा : संचालक मंडल के सदस्य, सम्बद्ध सभाओं के प्रतिनिधि, मार्ग दर्शक मंडल, कार्य कारिणी सदस्य
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१ गठन : २३ जून २००३, जयपुर में आयोजित अखिल भारतीय कायस्थ कार्यकर्त्ता सम्मलेन में।
२ स्वरुप : यह देश-विदेश में कार्यरत कायस्थ संस्थाओं, न्यासों, समितियों, मंदिरों, पत्र-पत्रिकाओं आदि का परिसंघ है। इसका संविधान अध्यक्षीय प्रणाली पर आधारित है। हर ५ वर्ष बाद सभी सम्बद्ध सभाओं के वैध प्रतिनिधि राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव करते हैं। निर्वाचित अध्यक्ष अन्य पदाधिकारियों तथा कार्य कारिणी का मनोनयन करता है। परिक्षेत्र अध्यक्ष ( चैप्टर चेयरमैन ) तथा युवा महत्वपूर्ण घटक हैं। राष्ट्रीय अध्यक्ष को परामर्श देने के लिए मार्ग दर्शक मंडल होता है। विधायिका (साधारण सभा) तथा kaarya paalika ( राष्ट्रीय कार्यकारिणी ) के माध्यम से गतिविधियों का सञ्चालन होता है।
३ उद्देश्य : उक्त सभी को सामाजिक समरसता, राष्ट्रीयता, सहयोग, सद्भाव तथा समन्वय के लिए एक संयुक्त मंच प्रदान करना। अन्य संथाओं के कार्यक्रमों में सहयोग देना तथा अपनर कार्यक्रमों में सबका सहयोग लेना। शासन। समाज तथा प्रेस को कायस्थों के संख्या बल, बौद्धिक क्षमता, आर्थिक स्थिति, सामाजिक मान्यता तथा सर्वतोमुखी योगदान की अनिभूति करना।
४ : सर्व धर्म समभाव, सर्वे भवन्तु सुखिनः, वसुधैव कुटुम्बकम, विश्विक नीडंआदि आदर्शों को मूर्त करने के लिए स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय तथा वैश्विक स्टार पर गतिविधियों का सञ्चालन, नियंत्रण तथा आयोजन करना और कराना। विश्व शान्ति, विश्व न्याय, विश्व ज्ञान तथा विव्श्व मानव की परिकल्पना को मूर्त कराना। इस हेतु चित्रगुप्त मंदिरों का निर्माण, जीर्णोद्धार तथा सञ्चालन करना।
५ सदस्यता : संरक्षक ११००/- , पदाधिकारी २५०/- वार्षिक, सम्बद्धता - राष्ट्रीय ५०१/-, प्रांतीय २५१/-, स्थानीय ५१/-, पत्रिका २१/-, धार्मिक संसथान ५/-।
६ मताधिकार : उक्तानुसार क्रमशः राष्ट्रीय १५, प्रांतीय १०, स्थानीय ५ तथा anya १ मत
७ कार्य काल : राष्ट्रीय अध्यक्ष, वरिष्ठ उपाध्यक्ष, महामंत्री लगातार २ कार्यकाल से अधिक अपने पद पर नहीं रह सकेंगे।
८ साधारण सभा : संचालक मंडल के सदस्य, सम्बद्ध सभाओं के प्रतिनिधि, मार्ग दर्शक मंडल, कार्य कारिणी सदस्य
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narayan narayan
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